उन्होंने कहा कि न्यायपालिका इस बात पर निर्णय नहीं ले सकती और न ही उसे यह निर्णय लेना चाहिए कि किसी धर्म का ज़रूरी हिस्सा क्या है, बल्कि उस धर्म के धर्मगुरुओं को इस बारे में फैसला लेना चाहिए.
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